बचपन ©श्वेता सिंह

 मुझे लौटा दो मेरे हिस्से  का बचपन

छोड़ आईं मैं तो मां के आंगन

वो छोटी सी रातों में नानी की  लम्बी कहानी

वो सुना  सा झुला वो आमों का बगिया

बाबा के कंधे  की सवारी पल भर में रूठना-मनाना

मुझे लौटा दो मेरे हिस्से का बचपन

वो बारिश की कस्ती वो आंगन का पानी

गुड्डे गुड़ियों की शादी में मैं अल्हड़ दिवानी

चाहें ले लोग मेरी जवानी मुझे लौटा दो मेरी कहानी

संग सहेलियों के हंसी ठिठोली 

करती थी मैं अपनी मनमानी

मुझे लौटा दो मेरे वो खेल खिलौने

चाहें दिला दो वो गिट्टी और कबड्डी का आंगन

वो गर्मी की छुट्टियों में नानी घर  की उघम चौकड़ी

याद है मुझको सब बातें हुई पुरानी



थकी हुई है आज मेरी कहानी

लादे है मुझपे बड़ी परेशानी

फुर्सत के पल की बात है पुरानी

दुर्लभ जिवन की बहुत हैं कहानी

छुटा है बचपन रूठा है जवानी

मुझे लौटा दो मेरी अपनी कहानी।


                                                              @श्वेता सिंह

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