श्राद्ध ©शैव्या मिश्रा

 माँ तुम जानती हो, मुझे बाबू जी से कोई प्रेम नहीं है, मुझे नहीं करना उनका श्राद्ध, मैंने गुस्से मे चीखते हुए लिफ्ट मे प्रवेश किया। 

लिफ्ट मे एक बेहद खूबसूरत सी युवती लिफ्ट की दीवार से टेक लगा कर खड़ी थी, मेरी तेज़ आवाज़ से वो मानो चौंक सी उठी। पीले सूट मे लाल चुनरी वाले दुपट्टे मे बेहद खूबसूरत लग रही थी वो, सच कहूं एक पल के लिए मैं भूल ही गया की मैं फोन पर माँ से बात कर रहा हूँ। "बेटा सुन तो, दूसरी तरफ से माँ की आवाज़ ने उस खूबसूरत तिलिस्म को तोड़ा, जो इस लाल दुपट्टे वाली ने बाँध रखा था। " वैसे भी जीवन भर बाबूजी से मेरी नहीं बनी, यकीन मानिए आज भी मेरा दिया पानी वो स्वीकार नहीं करेंगे, और मुझे इसके आगे कोई बहस नहीं करनी, कह कर मैंने फोन काट दिया। 

"अापको अपनी माँ से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी, कानो मे शहद घोलती सी एक आवाज़ आयी, सॉरी मुझे आपको ऐसे टोकने का कोई अधिकार नही, पर मुझे अच्छा नहीं लगा। उस लड़की ने सहज भाव से कहा। मेरे कुछ कहने से बोली, हाय, मेरा नाम प्रिया है, मैं इसी बिल्डिंग के बराह्वी फ्लोर पर रहती हूँ। हाय आइ एम् प्रवेश, अभी हाल ही में नवी फ्लोर के फ्लैट नंबर 970 में शिफ्ट हुआ हूँ। हाँ लगा मुझे, पहले आपको कभी देखा नहीं, कह कर वो मुस्कुरा दी।

हाँ तो क्यों नाराज़ थे आप अपनी माँ से उसने मासूमियत से पूछा। 

अरे प्रिया जी, मेरी माँ, चाहती थीं मैं बाबूजी का श्राद्ध करूँ, सच तो यह है की ज़िंदगी मे कभी मेरी बाबूजी से पटी नहीं, उनके और मेरे विचार कभी मिले नहीं! उनकी मृत्यु पर भी एक आसूं नहीं रोया मैं, तो ये श्राद्ध का नाटक क्यों करूँ मैं। 

अरे मेरा फ्लोर आ गया, अच्छा फिर मिलते हैं। कह कर मैं लिफ्ट से निकल गया। 

घर आ कर मैं पूरे दिन बाबूजी की, माँ की याद आती रही। याद आया कैसे बाबूजी मुझे मेरे दोस्तों के साथ खेलने नही देते, हर वक़्त पढ़ाई कराते, कभी मुझसे प्यार से बात नहीं की, जब भी देखा उन्हें नाराज़गी का लिबास पहने ही देखा था। यहाँ तक की अपनी पसंद के विषय तक मैं ना चुन सका था। 

माँ से भी कभी प्यार से बात करते नहीं देखा उन्हें, हालांकि कभी लड़ते झगड़ते भी ना देखा था उन्हें। एक अलग तरह की अंडरस्टैंडिंग थी उन दोनों के बीच। मैं बड़ा हुआ तो सोचने लगा माँ ने कैसे इस नीरस इंसान के साथ पूरा जीवन बिता लिया। 

कहते हैं खून के रिश्ते बेहद गहरे होते हैं, मैं यदि अपनी और बाबुजी की बात करूँ तो अवश्य ही वह खून पानी की भाँति रंगहीन होगा। 

खैर सोचते सोचते आँख लग गयी, और मैं सो गया। अगले दिन देर से नींद खुली, मैं लगभग भागते हुये ऑफिस पहुंचा, वहाँ भी काम इतना था कि सिर उठाने की फ़ुर्सत ना मिली। 

लिफ्ट मे पैर रखने ही वाला था की दौड़ते हुए कहीं से प्रिया भी लिफ्ट मे घुस गयी और हँसते हुए बोली, थैंक गॉड लिफ्ट नीचे ही मिल गयी वरना इतने थके होने पर भी मुझे घंटा भर इंतज़ार करना पड़ता। 

आज प्रिया ने गुलाबी रंग की साड़ी पहन रखी थी। कसम से उसको देखते ही थकावट उतर गयी। "अापको पता है प्रवेश जी कल रात मैं आपके बारे मे ही सोचती रही। ""अापको अपने पिता से इतनी नफ़रत क्यों है, बस यही सोचती रही और कुछ नहीं",वो मेरी आंखो मे देखते हुए बोली। पता नहीं प्रिया मे वो कौन सी कशिश थी की मैं ने एक अंजान लड़की के सामने अपने मन मे छुपी बाते कह दी। बता दिया की कैसे बाबुजी की सख्ती ने मुझसे मेरा बचपन मेरी खुशियाँ छीन ली, उन्होंने कभी मुझसे प्यार से बात नहीं की। जब मुझे उनकी जरूरत पड़ी उनको खुद से अलग थलग ही पाया। प्रिया उन्होंने कभी भी मुझे प्यार से गले नहीं लगाया। मैं उनकी वजह से किताबों मे सिमटता गया, अव्वल आने की दौड़ मे बचपन संगी साथी सब पीछे छुट गए। मैं उन्हें कभी माफ नहीं कर सकता। " अच्छा तभी तुम इतनी बड़ी कम्पनी मे सी ई ओ हो, बहोत सहजता से उसने कहा तो मैं अवाक् उसे देखता रहा। फिर उसने कहा, माँ बाप हमेशा बच्चों का भला चाहते हैँ प्रवेश, उसके लिए कभी कभी थोड़ी सख्ती करनी ही पड़ती है। उन्होंने तुम्हें हमेशा बुरी संगत से दूर रखा, तुम्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया ताकी तुम कुछ बन सको। आज खुद देखो, तुम्हारे दोस्त तुमसे कितने पीछे रह गए हैं तुम जीवन की जिन उंचाईयों पे खड़े हो उसमे तुम्हारे पिता का कितना बड़ा योग दान है तुम भूल गए हो। यार आई लव यू बेटा वाले पापा सिर्फ़ फिल्मों मे पाये जाते हैं, माँ तो अपने प्रेम का इजहार बच्चों से कर ही लेती है, जो बिना कुछ कहे अपना हर फ़र्ज़ पूरा करता है वो पिता होता है। क्या तुमने कभी अपने पिता से अपने मन की बात की। तुमको पता है, मेरी माँ बचपन मे गुजर गयी थी, मेरे पापा ने मुझे पाला था।मेरी हर जरूरत को बिना मेरे कहे पूरी कर देते थे, लेकिन एक रात जब उनको हार्ट अटैक आया और उन्हे मेरी जरूरत थी मैं लंदन मे थी अपनी ट्रेनिंग के लिए। मैं आज तक खुद को माफ़ नहीं कर पायी हूँ। जानती हूँ  तुम बोलोगे मेरी गल्ती नहीं है, फिर भी।

मेरा फ्लोर आ गया था।

 मैं पूरी रात जगता रहा, प्रिया की बातों से मैं हिल गया था, मुझे याद आने लगा कैसे बाबुजी ने मेरी हर जरूरत को मेरे माँग ने से पहले पूरा किया। ओवर टाइम कर के मेरे कमरे मे ए सी लगवाया। मैं बीमार होता डॉक्टरों की फ़ौज लगा देते। पिता की अच्छाई याद आने लगी। 

प्रिया रोज़ मिलती और धीरे धीरे मेरे मन मे बाबूजी के लिए आदर उत्पन्न होने लगा था। और एक दिन मैं पिता जी का श्राद्ध करने मंदिर गया। आंखें बंद करते ही पिता जी अचानक सामने आ गए। मेरी आंखों मे कैद बर्फ मोम की भाँति पिघल कर आँसूओ मे बह चली। मुझे एहसास हो गया था, पिता की डांट छेनी और हाथोड़ी की चोट समान होती है, जो मुझे जैसे अन गढ़ पत्थर को तराश कर मंदिर की मूर्ति का रूप देती है। मैंने हाथ जोड़ कर पिता से माफी मांगी, मेरे मन का मैल मेरे आसुओं ने धो दिया था। उस दिन पिता के श्राद्ध के साथ मैंने अपने मिथ्या अहंकार का भी श्राद्ध कर दिया था।


कई दिनो से प्रिया से मुलाकात नहीं  हो पाई थी। मैं उससे मिलने के लिए बेचैन था और मुझे उसको धन्यवाद भी तो देना था। पित्र पक्ष ख़तम हो गए थे, नवरात्रि मे घर जाने का सोच रहा था, आखिर माँ को भी तो प्रिया के बारे मे बताना था,पर उसके पहले प्रिया से बात करनी थी। घर जाने के एक दिन पहले भी प्रिया नही मिली तो मैंने उसके घर जाने की सोची। 

उस दिन लिफ्ट के बाहर लिफ्ट मैन मिल गया। "सलाम साहब, मैं मुन्ना हूँ, लिफ्ट मैन, जिस दिन आप शिफ्ट हुए उस दिन से छुट्टी पे था, माँ का श्राद्ध करना था गाँव गया था। आज ही लौटा हूँ। कौन से फ्लोर पे 9 है ना? याद है मुझे। 

हाँ मुन्ना 9 पे रहता हूँ मैं, बड़ी अच्छी यदाश्त है तुम्हारी, जिस दिन शिफ्ट हुआ था आखिर कार्टन  तुम्हीं ने तो पहुंचाया था, याद है मुझे। पर अभी मुझे 12 फ्लोर पे जाना है। 

_12...फ्लोर... क्यों साहेब, उसने हकलाते हुये पूछा। 

अरे 12 फ्लोर पे प्रिया मैडम रहती हैं ना, उनसे मिलना है। 

" आप प्रिया मैडम को कैसे जानते हैं,उसके चेहरे का रंग उड़ गया था।" कैसे ,क्या तुमसे मतलब? मैंने लिफ्ट मे लगी बटन पे हाथ बढ़ाया तो देख 12 फ्लोर का बटन निकला हुआ है। 

मैंने मुन्ना से कहा अरे ये बटन तो खराब है अब मुझे प्रिया से मिलने सीढ़ीयों से जाना पड़ेगा 12 फ्लोर क्या मुन्ना भाई। 

मुन्ना ने फटी आंखो से मुझे देखते हुए कहा, साहेब आप चाहे भी तो भी प्रिया मैडम से नहीं मिल सकते और ये लिफ्ट कभी भी 12 फ्लोर पर नहीं रूकती, 6 महीने पहले 12 फ्लोर पे शॉर्ट सर्किट हुआ था और 12 फ्लोर पे आग लग गयी, कई लोग जल के मर गए थे। कहते तब से 12 फ्लोर भूतों का निवास है। कोई भी वहां नहीं जाता ! कई किस्से हुए और सीढियाँ भी बंद करा दी गयीं हैं। 

मुन्ना तू मुझे डरा नहीं, मैं डरता नही हूँ, प्रिया को बताऊंगा वही तेरी खबर लेगी।साहेब पागल हो गए हो क्या, प्रिया मैडम को मरे 6 महीने हो चुके हैं, वो आग प्रिया मैडम के घर से ही लगी थी, बेचारी बहोत अच्छी थी, लेकिन पिता की मौत से पागल सी हो गयी थी। लोग कहते हैं आत्म हत्या करने के लिए उन्होंने ये आग खुद लगाई थी। 

"बकवास बंद कर अभी पिछले हफ्ते मैंने ये सेल्फी ली थी उसके साथ यही लिफ्ट मे, देख तू, कह कर मैंने अपना फोन निकाला और  मुन्ना को दिखाया। "

मुन्ना मुझे घूरता रहा, मैंने फोन छीन लिया दिख नहीं रहा क्या तुझे। 

मैंने फोन अपनी तरफ किया, उस सेल्फी मे मैं अकेला था। पूरी गैलरी मे मेरी और प्रिया की कोइ फोटो नहीं थी। 

                  @Dr. Shaivya Mishra

टिप्पणियाँ

  1. अत्यंत भावपूर्ण एवं रोचक कहानी 👌👌👌👌

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  2. जितनी दफा भी पढ़ती हूँ दिल को छू जाती है 💕👌👌👌

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  3. आप सभी का हृदयतल से धन्यवाद

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