महुआ ©शैव्या मिश्रा

 महुआ ने आज कितनी कोशिश करी थी स्कूल से जल्दी निकलने कि किंतु कापियाँ जांचने मे देर हो गयी! "उफ़ अभी साढ़े 6 ही बजे हैं लेकिन घुप्प अंधियारा हो गया है, कातिक मे मुआ सूरज भी जल्दी छुप जाता है!" महुआ हाथ मे बंधी घड़ी देख कर बड़बड़ाई! महुआ पास के गाँव मे पढ़ाती थी, इतनी मुश्किल से मिली नौकरी छोड़ भी तो नहीं सकती थी, गृहस्थी की गाड़ी, भाई की पढाई और लकवाग्रस्त पिता का इलाज छोटी सी उमर मे ना जाने कितना बोझ था उसके कंधों पे! खुशी की बात ये थी कि भाई की पढाई भी अब पूरी हो चली थी, जल्दी ही उसकी नौकरी लग जायेगी। फ़िर वो भी मधुसूदन से ब्याह कर पायेगी, पिछले तीन साल से उसका इंतज़ार कर रहा, सोचते-सोचते उसके गाल लाल हो उठे! 

अपनी सोच मे गुम वो कब घर पहुंची, पता भी ना चला, घर मे पैर रखते ही माँ फट पड़ी, "कहाँ रह गयी थी बिटिया, हम कब से राह देख रहे थे, कान्हे इत्ती देर कर दी? तोहे पता है, आज तो मुई चिरैय्या, हमाए छज्जे पे बोल रही थी, हमार कालेज तब से धुक धुक कर रहा, जाने किसको खाने आई है ये मुई, " उन्होंने घबराये स्वर मे कहा। 

"लगता है.. हमार. बुल्लवा ..आया है, खाट पर पड़े पिता ने कराहते हुए एक एक शब्द जोड़ कर धीरे से अस्पष्ट स्वर मे कहा। 

" अरे कैसन बात करते हो बाबू जी, हम ये सब नाही मानते, आप जल्दी अच्छे हो जाओगे, हम आपको सहर के बड़े डाक्टर को दिखाएंगे! " महुआ ने बात टालते हुए कहा। 

"बिटिया.. अब डाक्टर भी.. कछु ना कर पायेगा! " कहते कहते पिता के टेढ़े मुँह से लार चुने लगी। 

महुआ पास बैठ कर उनका मुँह अपने दुपट्टे से साफ करने लगी! पिता जब तक ठीक थे उन्होंने कभी महुआ और महेश मे अंतर ना किया, गाँव वालो का विरोध सह कर भी दोनो को पढाया था! कहाँ तो उसके ब पास करते ही, उसके हाथ पीले करना चाहते, किंतु तभी उनको लकवा मार गया और बिस्तर पे पड़ गए तब से सब बदल गया! 

"मै ..ठीक..हूँ बिटिया तू कपड़े बदल ले थक गयी होगी! 

पिता को अपनी चिंता करते देख महुआ की आँखे भर आईं उसने मन ही मन इनारे वाली देवी मैय्या जो कि इस गाँव की कुलदेवी थी प्रार्थना की " हे भगौती माई, किरपा करो, सब बीपत हरो, हम शुक्कर को कराही चढ़ाएंगे। "

गाँव मे देवी माँ को विपत्ति टालने के लिए या मन्नत पूरी होने पर हलवा पूरी का भोग लगाया जाता था, इसी परंपरा को कराही चढ़ाना कहते थे! महुआ उठ कर जा ही रही थी, कि बाहर  मुई चिरैय्या की भयानक आवाज़ गूंजने लगी! 


महुआ कुछ कहती उसके पहले ही उसे बाहर से कुछ शोर सुनाई दिया, भागते हुए बाहर आई तो देखा,  चार लोग महेश को एक खाट पर लाद कर ला रहे थे, पता चला किसी विषैले सांप ने डँस लिया है! सुनते ही उसे काठ मार गया, पिता की ये हालत भाई को कुछ हो गया तो। महेश बेहोश था, लोगों ने बताया रामदीन काका के खेत मे, उसके मवेशी घुस गए थे, जब वो उन्हे हांकने गया तो उसमे बैठे भुजंग ने डंस लिया। 

ला कर लोगो ने महेश को घर मे लिटाया और भुल्लन कुन्हार को बुला भेजा। वो ज़ेहरीले से जहरीले सांप और बिच्छु का ज़हर उतारने का मंत्र जानता था। महुआ ने अपना दुपट्टा उतार के महेश के पैर मे बांध दिया, ज़हर से उसका पैर नीला पड़ रहा था। माँ का रो रो बुरा हाल था। पिता अपनी बीमारी को कोस रहे थे। महुआ बेचारी कभी महेश को संभलती कभी उनको। भुल्लन ने आते ही काली मिट्टी से ज़हर उतरना शुरू किया, और आधे घंटे तक कुछ बुद्बुदाने के बाद एक पुड़िया मे से राख जैसा कुछ निकाल के महेश के मुह मे डाल दिया। "आज की रात भारी है बिटिया, भुल्लन ने गम्भीर स्वर मे कहा, यदि आज इसे होश आ गया तो सब ठीक वरना। 

" हाय मुई चिड़िया हमारे बच्चे को खा जायेगी मा ने रोते हुए कहा! 

क्या मुई चिरिय्या? भुल्लन ने चकित होते हुए कहा। 

दरसल मुई चिरैय्या का बोलना अप्सकुन होए है बिटिया, यम की दूत होवे है वो मुई, जब ही बोलत है कोई ना कोई को खा जाती है। उसके बोलने का मतबल जरूर कछु अनहोनी होने वाली है! "भुल्लन ने चिंतित स्वर मे कहा, हमाए काका के मरने से पहले भी डायन हमाए छत पे बोलती रहती थी। "

क्या कोई उपाय है जानने का, किसकी मौत का संदेसा लाई है वो? महुआ ने अचनाक पूछ लिया। 

"उपाय तो है बिटिया, पर उसमे बहुत खतरा है।" 

कैसा उपाय? कौन सा खतरा! 

"कहते हैं, भोर के तीन बजे, मुआ चिरिय्या पीली नदी किनारे पानी मे घूरती बैठी होती है, अगर कोई दबे पाँव पानी मे दूर से देखे तो उसे मरने वाले का चेहरा दिखाई देता है। "

"इसमे कौन सा खतरा काका? ई तो कोई भी कर सके है, महुआ ने उत्सुकता वश कहा! 


" खतरा ई है बिटिया, ऊ वकत, वो चिरैय्या साक्षात यम होवे है, अगर किसी ने थोड़ा भी सोर किया और चिड़िया ने पलट के देख लिया, उसकी मौत उसी पल निश्चित है।खैर हम देवी मैया से महेश के लिए प्रार्थना करेंगे, तुम जैसे ही उसे होश आए, ये पुड़िया पानी मे डाल के पिला देना। कह कर, भुल्लन उठ खड़ा हुआ। महुआ वही बैठी रही। ज्यूँ ज्यूँ रात बढ़ रही थी,  महुआ की बेचैनी बढ़ रही थी। पिता की तबियत भी आधी रात बिगड़ने लगी, उनके दिल की धड़कने तेजी से बढ़ रही थी और इधर महेश की क्षीण हो रही थी। ढाई बजे के लगभग जब सबकी आँख लग गयी, महुआ की बेचैनी ने उसे एक फैसला लेने को मजबूर कर दिया, उसके पाँव स्वतः ही पीली नदी की तरफ बढ़ने लगे! हल्की बारिश हो रही थी, चाँद बादल से अठखेलियाँ कर रहा था, थोड़ा थोड़ा उजाला तो था, किंतु रात के सन्नाटे को चीरति झींगुरों की आवाज़ माहौल मे दहशत पैदा कर रही थी पर उसे परवाह ना थी, उसको यकीन था, कोई चिड़िया नही होगी सारी बातें बेबुनियाद हैं। लाल आँखो वाली मुई चिड़िया महज एक साधारण पक्षी है, गौरैया, कौव्वा और मोर की तरह। 

नदी के किनारे पहुँचने पर उसकी आँखे आश्चर्य से फैल गयीं! नदी की तरफ़ मुँह किये हुए एक विशाल पंछी बैठा था, उसकी पीठ महुआ की ओर थी। महुआ दबे पाँव आगे बढ़ने लगी, धीरे. .धीरे,  उसे अभी भी यकीन था नदी मे उसे बस चिड़िया की ही परछाई दिखेगी। वो लगभग चिड़िया के करीब पहुंची ही थी कि गीली मिट्टी पर उसका पाँव फिसला और वो धम्म से नीचे गिर पड़ी, उसके गिरते ही चिड़िया ने पंख फैला दिये, और उसके ऊपर आ कर बैठे गयी, उसकी बड़ी बड़ी लाल आँखो से मानो क्रोध बरस रहा हो। उस चिड़िया ने पल भर के लिए महुआ की भयभीत आँखो मे घूर कर देखा और एक भयानक आवाज़ करती हुई उड़ चली। महुआ ने राहत की सांस ली और उठने की कोशिश करने लगी, किंतु यह क्या, उसके हाथ पाँव जड़ हो रहे थे, उसकी सांस धीमी पड़ने लगी थी, आँखे बंद होने से पहले, उसे याद आया , उसने नदी मे एक चेहरा देखा था...वही चेहरा मुई चिरैया की लाल आँखो मे भी था...... उसका खुद का चेहरा।

(समाप्त) 

                                @Dr. Shaivya Mishra(Shivi) 

टिप्पणियाँ

  1. अद्भुत भाव लिये हुये अत्यंत रोचक कहानी 👌👌👌

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  2. आप सभी का हृदयतल से धन्यवाद

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