आज का भारत ©अतुल सैनी

 नाम बदल दिए हमने 

पहचान बदल दी हमने

इतिहास भी बदले

तो लोग कुछ खास भी बदले हमने


कभी राजा हुए यहाँ

कभी बादशाह भी हुए

आयी गुलामी भी कभी

कभी ईश्वर हर जगह भी हुए


पर ये भारत तो यहीं हैं

आज भी यहीं हैं

और हमेशा यहीं रहेगा भी

फिर ये लोग लड़ किस बात के लिए रहे हैं

ये झगड़े कर किस बात के लिए रहे हैं


यहाँ राज अब सरकारो का है

कुछ गद्दार, कुछ चाटुकारो का है

अगर हम विपक्ष में बैठे हैं

तो सरकार बस गलती करती है

अगर सरकार हमारी है तो

सब कुछ सही ही होगा


जनता कल भी गुलाम थी

आज भी गुलाम है

जनता कल भी आम थी

आज भी जनता आम है

जो कल तक गलियों में बदनाम था

यहाँ आज उसी का नाम है

और इस भारत देश में कल भी कायर थे कुछ

आज भी इस धरती पर चोट के निशान हैं


जहाँ हमें फायदा लगता है

वहाँ हम समर्थन करते हैं

जहाँ लगता है नुकसान होगा

वहाँ सड़को पर निकलते हैं

तो क्या हम केवल अपने लिए जी रहे हैं

इस देश से हमारा कोई नाता नहीं

देशभक्ति हर कोई दिखाता है यहाँ

फिर देशहित का फैसला क्यों हमें भाता नहीं


पर हमें क्या मतलब देश से

हमें तो मतलब है अपनी जाति, अपने भेष से

बस प्याज और पेट्रोल के दाम अहम है

देशभक्ति तो हमारे लिए एक वहम है


यहाँ धर्म देश से ऊपर है

लोगो के कर्म देश से ऊपर है

कल तक जाति देश से ऊपर थी हमारी

अब तो राजनीति भी देश से ऊपर है


पर याद रखना इतिहास लिखने वालो

देश के गद्दारो से चोरी छुपे मिलने वालो

कुछ नस्लें बदल जाने से

पूरी फसलें नहीं बदल सकती

कुछ चट्टानें सह जाती हैं सबकुछ

हर आँधी तबाही मचाकर नहीं निकल सकती


आरक्षण की माँग हो तो हम निकलते हैं घरों से

देशहित की बात हो तो हमें मतलब नहीं रहता

जहाँ एकता दिखाने की बात आती है

तो इस देश में कोई कुछ नहीं कहता


कुछ लोगों की जान यहाँ बहुत सस्ती है

जवान, किसान और एक बेटी की जिंदगी नोटो में बिकती है

बेटियों और देश को जलाने का नया दौर शुरू हुआ है अब

बेबसी तो औलाद खोने वाली माँ की आँखों में दिखती है।।

                                                                      @ अतुल सैनी

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'