चम्पई ख़्वाब-नज़्म ©हेमा काण्डपाल
लेवेंडर के फूल से, चम्पई कुछ ख़्वाब थे
मख़मली सी रात थी, दिन में माहताब थे
जिनकी सुर्ख़ रौशनी से चाँदनी जा मिले
जिनकी सियाह गोद में सब सितारे आ खिलें
सुरमई सी आँख ,जिसकी चमक थी सीमाब सी
देख के जिसका छब खु़र्शीद ख़ुद बुझे जले
जुगनू सब मुतरिब बने गा रहे थे राग में
गुलमोहर खिल रहे थे रागिनी के बाग़ में
जा-ब-जा यही बात थी यही शोर था जा-ब-जा
गुम-गश्ता दो लोग जो ,जल रहे थे आग में
उस आग से रौशन हुए, चिराग़ प्रेम के वो सब
जिनको पड़े बिछड़ना ,हवा से न जाने कब
ए'तिमाद था हमें दस्त-ए-क़ातिल पर बहुत
सो हुदूद सब ख़ुशी ख़ुशी उसके हाथ रख दिए
माज़ूर हम थे हो गए और वो उठ के चल दिए
मुस्तक़बिल मेरा कहीं, माज़ी में अपने खो गया
मुख़्तसर मंज़र सा वो, वारफ़्ता हो गया
वास्ता, था न अब, उसको मेरे काज से
और मैं थी लड़ रही ,ख़ुद ही अपने आज से
अाई ऐसी तीरगी के रातरानी खिल गई
तर्क-ए-मोहब्बत की घड़ी, इक ख़लिश से मिल गई
तब था पहना ज़र्द सा , खोखला मैंने कफ़न
रीत इक मख़मूर सी, कामराँ फिर हो गई
@हेमा काण्डपाल 'हिया'
Gazab ma'am 👌 👌
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत.. 💐
जवाब देंहटाएंबेहतरीन मर्मस्पर्शी गज़ल 💕👌👌👌
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर।😊👍✨
जवाब देंहटाएंआप सभी का हृदयतल से धन्यवाद
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