ग़ज़ल ©हिमाद्रि वर्मा हिमा
चुभती हैं आँखें पर नमी मिलती नहीं
ग़ुम है कहीं अब जिंदगी मिलती नहीं
भटके हुए ग़म लौट आते हैं मगर
खोई हुई ख़ुशियाँ कभी मिलती नहीं
राहत-फ़ज़ा राहें तो जर्जर हो गई
मंज़िल कहीं पर आख़िरी मिलती नहीं
अब दौर बदला क़ाफ़िया-पैमाई का
मिलते हैं मिसरे शाइरी मिलती नहीं
ज़ब भी कहूँ ऐसा 'हिमा' में क्या दिखा
कहते हैं तुम सी सादगी मिलती नहीं
@ हिमाद्रि वर्मा हिमा
Gazab 👏👏
जवाब देंहटाएंBahut shukriya
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल.. 💐
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया आपका सर 🙏💖
हटाएंबेहद खूबसूरत 👌👌👌
जवाब देंहटाएंKhubsurat ❣️
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