ग़ज़ल ©सुचिता

 ख़ुद को इतना भी ना तुम सताया करो 

बेवजह भी कभी मुस्कुराया करो 


हिज्र की शब हो या वस्ल के वसवसे 

यूँ गुहर अश्क़ के ना लुटाया करो 


धड़कनो में करे रक़्स जज़्बात जब 

लिक्खो कोई ग़ज़ल गुनगुनाया करो


बर्क़ सी यूँ दरकती है दिल में कहीं 

यूँ ना आ -आ के यादों सताया करो 


रोज़ मिलते हैं शम्सो-कमर यूँ कहाँ

आबले पा के ना तुम दिखाया करो 


छोड़, हर वक्त ये वक्त का मर्सिया

आईने से ना ख़ुद को छिपाया करो 


चाय, मौसम ये बारिश यूँ भी हो कभी 

शाम रंगी धनक से चुराया करो 

                                                                     @Suchita


                                          


टिप्पणियाँ

  1. खूबसूरत तस्वीर❤️
    और बेहतरीन रचना👌👌🙏

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